जो यहाँ कुछ काटकर कुछ और लिखा है
अनकहे में ही असल पैग़ाम छिपा है
जो सुनूं उसको तो कोई और लगे है
और जो देखूं तो कोई और दिखा है
हैं अजी मशहूर इतने दोस्तों हम
जो नहीं पहचानता, वो भी ख़फ़ा है
दरम्यां जो गुफ्तगू का सिलसिला है
बसकि मेरी ख़ामुशी से ही टिका है
ले सके ना हम कभी भी नाम उसका
रवि जिसने नाम बेटे का रखा है
दरम्यां जो गुफ्तगू का सिलसिला है
बसकि मेरी ख़ामुशी से ही टिका है
ले सके ना हम कभी भी नाम उसका
रवि जिसने नाम बेटे का रखा है
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