बदन में जब नहीं ख़ू फिर भला ख़ू कैसे खांसा मैं कि मुफलिस बन, बना हूं देख जैसे इक तमाशा मैं रहे सावन बने सावन, कि सर पटके जहां साहिल मरा हूं उसी समंदर के किनारे हाय प्यासा मैं तलाशा तन तलाशा मन, जवानी और वो बचपन मिला लेकिन कहीं मैं ना, कि कितना भी तलाशा मैं मुझे शीरी वही तू थी, तुझे मीठा वही मैं था तू भेली एक गुड की और तेरा था बताशा मैं हंसे दुनिया कहे दुनिया अरे तू चीज है ही क्या कि तू पहचान मेरी थी कि था तेरा शनासा मैं दुखी तू भी थी मैं भी था घिरा सा इक हताशा में बनी हिम्मत मेरी तू और तेरा था दिलासा मैं जो था प्यासा, नदी खोजी, नदी खोदी, कई मैने मिले दरिया सदा मुझको सदा से हूं सो प्यासा मैं