जिस बूढ़े को घर के बाहर सुलाया जा रहा है उसके पेंशन से ही घर का किराया जा रहा है हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होता है ड रे हुये को डरे हुये से डराया जा रहा है तुझे फिर बेघर करने की चल रही है साज़िश राम तेरे मस्जिद को मंदिर बताया जा रहा है किसी की गोली नहीं , उसे तो भूखमरी मारेगी क्यों एक भूखे को सिपाही बनाया जा रहा है इस क़दर तन्हा हूँ , कि तन्हाई भी साथ नहीं धू प के साथ ही मुझसे दूर साया जा रहा है मेरे दुश्मनों ने उसे खड़ा कर दिया मेरे ख़िलाफ़ कि मेरे ख़िलाफ़ मुझे ही आज़माया जा रहा है
एक बीज लगा रहा हूँ, मैं एक शजर के लिये है ये इंतजाम बहुत, आख़िरी सफ़र के लिये दीवारें दीवारों से जुड़ी हैं, घर घर से नहीं जुड़े इस तरह अजनबी है शहर, शहर भर के लिये देखा न करो यूं आईना, मेरी जां मेरी नज़र से अपनी ही नज़र है बहुत, बुरी नज़र के लिये दिल लगा रहा हूँ, कि भूलना है दिल का टूटना है बहुत ही लाज़िमी ये ज़हर, ज़हर के लिये है उसे भी एक आस, पानी को भी लगती है प्यास तट पे नदी आयी, जाने किस लहर के लिये हक़ीम की दवा है, या हक़ीम ही दवा है फ़क़ीर दुआ ना करो, दवा में असर के लिये