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गाँव का मौसम


इन्द्रधनुष बालों में
सजा के निकली है
आज तो धूप भी
नहा के निकली है
झोपड़े के दरकते किनारों से
बूँद-बूँद मोती झड़े
कच्ची दीवारों का पिघला सोना
सूख रहा है पड़े पड़े
बूँद बूँद है फौजी जो
लश्कर बनाते लहरों का

गाँव का तो रंगीन है
कैसा है सावन शहरों का
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हवा के झूले पे फूलों ने
कलियों को झुलाया है
जाने किसने खेतों को
पीला स्वेटर पहनाया है
आसमान से बादल के जाले
जाने किसने उतारा है
झील को लगी आसमाँ की छूत
नीला-नीला पानी सारा है
दिन-दोपहर हुए आलसी
जगते-जगते जगते हैं
स्वेटर पहने रंगीन फूल
तितलियों के पीछे भगते हैं

पानी अपने दाँतों को
रोज़ धार लगाता है
पर सूरज जैसे बौराया हो
रोज़ शाम को ही नहाता है
बैठे बैठे सुन रहे हैं
संध्या -भजन नहरों का
गाँव का तो रंगीन है
कैसा है जाडा शहरों का
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आमों के बागीचे में
काली कोयल गाती है
जाते-जाते कच्चे आमों में
मीठी आवाज़ भर जाती है
तपते सूरज के नाक के नीचे
चाँद घाट पे नहाते हैं
अपनी परछाई ओढ़े वो
अपना साया बन जाते हैं
दिन है बाप के जैसा
पर माँ जैसी रात हैं
चाँदनी के ब्याह में
तारों की बारात है
फुर्सत से कब फुर्सत है
करतब देखें बछड़ो का
गाँव का तो रंगीन है
कैसा है जेठ शहरों का


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