Skip to main content

कि मैं तेरे रहम ओ करम का *मुंतज़िर नहीं हूँ
तेरी महफ़िल में मौजूद हूँ, हाज़िर नहीं हूँ
मेरे लब पे न आएगा मेरे क़ातिल तेरा नाम
ज़मीर अभी भी ज़िंदा है, अव्वल *मुखबिर नहीं हूँ
मैं तुझे पाने के लिए, क्या ख़ुद को बेच दूं?
तेरे लिए तो हूँ, सिर्फ तिरी ही ख़ातिर नहीं हूँ
तेरे दिल के बाद कितने दिलों ने दी दस्तक मुझे
तू देख आज भी बेघर हूँ, *मुहाज़िर नहीं हूँ
मेरा ग़ुस्सा मेरे ग़म की फक़त पर्दादारी है
तिरी बेवफ़ाई में शामिल हूँ, ज़ाहिर नहीं हूँ
अमृता वो बेदिल है, जो दिल का मरीज़ बना दे
क्या फ़रक़ कि फ़क़ीर हूँ मैं, कोई साहिर नहीं हूँ


Comments

Popular posts from this blog

हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा