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बदल जाना किसी का इतना बुरा नहीं है
उसके समझ आने, जितना बुरा नहीं है
बकरे ने कसाई को समझ लिया ख़ुदा
यही यकीन बुरा है, ठगना बुरा नहीं है
जितना समझे रहे थे, उतना नहीं था अच्छा
जितना समझ रहे हो, उतना बुरा नहीं है
बस यही एक तजरबा, हमें कई मर्तबा हुआ
कि मुझसे है बुरा वो, वरना बुरा नहीं है
सजे तो लगे परी-सी, डरता हूँ कि वैसे
ग़रीब की बेटी का, सजना बुरा नही है
ऐसे जल रहा हूँ, गल रहा हूँ पिघल रहा हूँ
हर वक़्त जलन बुरी है, जलना बुरा नहीं है
माना बुरे हैं हम फ़क़ीर, कुछ अपनी भी कहो
बुरे नहीं हो तुम, कि ज़माना बुरा नहीं है?


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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा