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नज़रों के नहीं जुड़ते हैं तागे देखो
देखो, अबकि मुझे जिस्म से आगे देखो
एक सपना आकर लेट गया बगल में
कहता है अब मुझे जागे जागे देखो
मैं मर न गया तो फिर तुम बोलना
ज़रा एकबार अपनी क़सम खाके देखो
प्यादा हूँ तो यूं क़ुर्बान न करो मुझको
वज़ीर बन जाऊंगा आज़मा के देखो
बंधे हाथ तैराने के बाद, हाकिम ने कहा
इस परकटे को पहाड़ से उड़ाके देखो
अमावस की रात जो वो आये छत पे
फिर तुम चाँद को चाँद के बहाने देखो
दिल्ली दिलरुबा सी होने लगी है, यानी
बिछड़ने वाले हैं दो दीवाने देखो
वो जो उनसे न मिल सके, खुश हैं फ़क़ीर
वो जो ख़ुश हैं, कितने हैं अभागे देखो

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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा