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कोई उदास है किसी की वो खुशी है
मुक़म्मल ज़िंदगी की जैसे इक कमी है
सड़कें बिछाके सो गया, गहरी है नींद भी
आंख में ख़ाब नहीं, वो कितना धनी है
क्यों किसी ग़रीब की ले रहा है जान
ख़ुदा नहीं है तू, कि बस एक आदमी है
नब्ज़ देख मरीज़ की बोला चारागार
बीमार में एहसास की सख्त कमी है
माँ की आँख का समंदर रहता है उफान पे
बाप की आंख की नदी जम सी गयी है
सब देखके भी खामोश रहना, ग़लत नहीं है पर
इतना 'गलत न होना' भी, कहाँ 'सही' है
तुमने जहाँ छोड़ा था, वहीं रुक गया राह सा
इक सफ़र-सी उम्र, मुझसे गुज़र रही है
गर्दन से बंधा पुराना कैलेंडर लटकता हुआ
नाकाम वक़्त की दरअसल खुदकुशी है

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मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.

मदारी

अरे! हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरा पिटारा, है जग सारा, दुनियादारी हो तेरे इशारे का सम्मान करें ख़ुद हनुमान तुम मांगो भीख तेरे कब्ज़े में भगवान ईश का करतब इंसान और ईश इंसानी कलाकारी हो   हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! आस्तीन सा एक पिटारा सांप हम जै सा तुम्हारा सर पटके बार बार विष उगलने को तैयार न ज़हर उगल आज मत बन रे समाज काटने- कटने की ये बीमारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरे जमूरे- आधे अधूरे भूखे - नंगे , हर हर गंगे हाथसफाई के उस्ताद पर लगे कुछ न हाथ जीने के लिए जान लगाएं ज़ख्म से ज़्यादा कुछ न पाएं हवा खाएं साएं – साएं बचपन के सर चढ़ गयी ज़िम्मेदारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो!
हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी