वो जो कुछ काटके कुछ और लिखा है
उसी में ही असली पैग़ाम छिपा है
उसी में ही असली पैग़ाम छिपा है
दरम्यां जो गुफ्तगू का है सिलसिला
वो बस मेरी ख़ामोशी से टिका है
वो बस मेरी ख़ामोशी से टिका है
उसे सुनूं तो कोई और ही है लगे
उसको देखूं तो कोई और दिखा है
उसको देखूं तो कोई और दिखा है
मशहूरी का ये आलम है कि मुझे
जो जानता भी नहीं, वो भी खफ़ा है
जो जानता भी नहीं, वो भी खफ़ा है
उसके सामने सर झुकाया, तो पाया
अपना सर अपने क़दमों में रखा है
अपना सर अपने क़दमों में रखा है
बेची नहीं क़लम, जिसने भी फ़क़ीर
अख़बार सा वो भी रद्दी में बिका है
अख़बार सा वो भी रद्दी में बिका है
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