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जिन दो परायी आँखों में मेरा सपना पलता है
मेरी उम्मीद के सांचे में, उसका अरमान ढलता है

रूह बदन का नाता है, खुशबू गुल का रिश्ता है
जिसे पाने की चाहत है, वो मुझे खोने से डरता है

वो मेरा आईना है, मैं लिपटी उससे परछाई हूँ
देखे अक्स ख़ुद का वो, मुझे पागल-पागल कहता है

वो ग़ुम-शुदा है मुझमें और मैं ला-पता हूँ उसमें
उसमें ख़ुद को पाता हूँ, वो ख़ुद से मुझमें मिलता है

रुक - रुक कर कहता है, कहते - कहते रुकता है
मुझसे कहने वाली बातें, ख़ुद से ही कहता रहता है

जो घाटा है वो मुनाफ़ा है, मुनाफ़े में बस घाटा है
इश्क़ में फ़क़ीर चौथी फेल, बस तारे गिनता रहता है

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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा