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कोई कसर नहीं छोड़ेगी, अपना निवाला बनाने में
जाने क्या मज़ा आएगा, मिट्टी को मिट्टी खाने में

बारहा लहरें तोडती हैं, बारहा वो बनाता है घरोंदा
मुझे भी बच्चों सा हौसला दे, घोंसला सजाने में

तितलियों पर है असर उसके काले जादू का
डूब कर मर जाना चाहतीं हैं, लबों के पैमाने में

एक ख्वाब को देखा रहा हूँ मैं करवटें लेते हुए
ख्वाब मेरा टूट ही जाए, कहीं उसे जगाने में


उसे लगता है मुश्किल है, तो मुमकिन भी होगा
पागल कब से लगा है, पानी पर तस्वीर बनाने में

नज़रों से किया वादा, जुबां से मुकर गए फ़क़ीर
यही तो फ़रक है नज़रिये में, और नज़र आने में

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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
मिरा होगा फ़क़त तू सुन, हमारा तो नहीं होगा तुझे गर तू भी चाहे तो गंवारा तो नहीं होगा जिसे तुम दोस्त कहते हो, उसे तुम आज़माओ तो जहाँ डूबे वहाँ होगा, पुकारा तो नहीं होगा मुहब्बत का दुबारा, तजरबा, कुछ यूं हुआ यारों ग़लत थे हम हमें धोखा दुबारा तो नहीं होगा मिटाया है अभी उसने फ़क़त सिन्दूर माथे का अभी कंगन वो सोने का उतारा तो नहीं होगा अजी उसको तो मेरी बंद आँखें देख लेती हैं नज़र वालों, नज़र होगी, नज़ारा तो नहीं होगा