-->
इस पानी में ये बू सी क्यूँ है?
बेरंग सी हुआ करती थी
अब ये लहू सी क्यूँ है?
क्यूँ लगती है ये कभी नमकीन मुझे
किसी के हैं ये अश्क़.....
क्यूँ इस दहशत पे है यक़ीन मुझे?
शिव की जटाओं में
ये विदेशी रिबन किसका है?
प्यास भरी हैं बोतलों में
लुटा ज़मीर -ओ- ज़ेहन किसका है?
छीनकर हमसे सुराही
कटोरा हमें थमाया है किसने?
दरिया को ताल
आख़िर
बनाया है किसने?
हर घूँट में ज़हर -ए- तरक्क़ी
मिलाया है किसने?
जिसके लहू से धोये है
तूने हर पाप .... हर दाग़
ऐ खूं - हराम दुनिया
कर कुछ तो याद
आँखों से बनके अश्क़
रिसती वही है
जुनूं - सी खूं - सी नसों में
दौड़ती वही है.
जिस माँ की दूध ने
सींची है तरक्क़ी
वो बिजली, ये पटरी
वो उड़न तश्तरी
ये आटा चक्की
क्या सिला दिया है
उसके ममता का ऐ इंसां
घोल दिया ज़हर उसमें
मौत कर दी उसकी पक्की
दी है उसे तुमने बस
आठ साल की मोहलत
जूडस चाँदी के तीस सिक्के!!!!
तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत
जूडस चाँदी के तीस सिक्के!!!!
तुम्हें पचेगी नहीं ये दौलत............
Comments
Post a Comment