Skip to main content

टूटना

टूटूं तो टूटूं, सितारों की तरह
टूटने में टूटने का हुनर हो

या बिखर जाऊं टूटके आईने सा
तू ही तू हर टुकड़े के अंदर हो

टूटूं तेरी आँखों से जैसे शबनम
एक बूंद में सारा समंदर हो

तेरे हाथों से छूट जाऊं कभी यूँही
तुझसे ही टूटना मेरा मुक़्क़दर हो

मैं जो टूटूं, तू तड़पे मछलियों सी
इक तड़पती आह तेरे लब पर हो

ऐसे टूटूं जैसे शजर से कोई शाख
ताउम्र तुझे अफ़सोस मुझे खोकर हो

दिल का टूटना भी क्या कोई टूटना है फ़क़ीर?


Comments

  1. बहुत भावपूर्ण रचना है। मेरी रचनाओं को भी पढें
    click on http://manishpratapmpsy.blogspot.com

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा