चाँद कितना
बेचारा लगता है
एक बुझा
हुआ तारा लगता
है
आसमान के आईने
में
अजी अक्स
हमारा लगता है
बे-पतवार उतरा हूँ दरिया में
देखो कहाँ किनारा लगता है
कफ़न ओढ़े
सोया है जो
ज़िन्दगी का मारा
लगता है
उसकी रुख
से धोखा खा
गए
आतिश भी
प्यारा लगता है
उसको वजूद कहता था अपना
वो ख़ुद से हारा लगता है
कितनों की मन्नतें हो गयी पूरी
वो टूटा ऐसा, तारा लगता है
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