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आइने में इक अजनबी को देखके सिहर गए
अपने ही अक्स से आज वो कैसे डर गए


शेख की नसीहत 'सुकूं मिलेगा मस्जिद जा'
किया मस्जिद का *रुख़ और तेरे घर गए

वो  परिंदा  अब  न  उड़  सकेगा  *आईंदा
पेट  की  सुनी  तो  उसके  *पर  गए

उन  पर  इल्ज़ाम  कैसे  लगाओगे  मियाँ
नज़रों से कहकर जो जुबां से *मुकर गए

हमें  था  रिश्ते  का  ख़्याल  इस  क़दर
सुनते  रहे, चुप  रहे, हाँ  हम  डर  गए

राम -ओ- रहीम तेरे एक घर के झगड़े  में
कितने बदनसीबों के घोंसले बिखर गए

बुलंदी  है  शुरुआत  गिरने  की  फ़क़ीर
सर  पर  चढ़े  जो  नज़रों  से  उतर  गए

*रुख़ - turn towards *आईंदा - In future *पर - Wings *मुकर - Denied


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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा