Skip to main content
कर रहे हैं हरपल ख़ुदकुशी देखिये 
कहते हैं किसको ज़िन्दगी देखिये 

आँखों पर छाने लगेगा अँधेरा 
पल भर जो रौशनी देखिये 

डंक मरती हैं चीटियाँ जुबां से
अलफ़ाज़ है कितनी चाशनी देखिये

रोज़ा से कब होती हैं मुरादें पूरी
मुफ़लिस की फाकाकशी देखिये

अपनी गिरेबां झाँकने से अच्छा
फ़क़ीर ख़ुदा में कोई कमी देखिये 


इसी मिज़ाज लेकिन अलग खानदान के चंद शेर:

कहने को जुदा हैं मुझ से
दिखती हैं चाहे कहीं देखिये


अपनी तकदीर जानने के लिए
अपनी नहीं उनकी ज़बीं देखिये


दूर से हर चीज़ लगती है हसीं
कभी चाँद से आप ज़मीं देखिये

Comments

Popular posts from this blog

हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा