ख़्यालों से नहीं
दरवाज़े से कभी आओ न
रू-ब-रू आकर ऐ ख़्वाब मेरे
ख़्वाब से कभी जगाओ न
कभी यूंही आओ छत पे तुम
अमावस को पूनम बनाओ न
कर दो सूरज को मद्धम कभी
कभी रुख़ से पर्दा हटाओ न
कब तक रहोगी परछाईं बनके
परछाईं को बदन बनाओ न
ख़्यालों से नहीं
दरवाज़े से कभी आओ न ......
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