Skip to main content

सुनो .....



सुनो .....
यूं हुस्न पे अपने
इतना मत इतराओ
ग़ैर की दौलत पर
हक़  मत जताओ

ये बताओ .....

कि किसने तुम्हारी जुल्फों को
रंगा  था सावन के रंग में
किसने निचोड़ कर काली घटाएँ
भर दिया इनके अंग - अंग में

किसने सिखाया इन्हें
आबशार (झरने) सा ढलकना है
कि  शरमाये जब चाँद
बादल में बदलना है।

ज़रा हाथ लगाकर देखो
इनकी रंगत गवाही है
इनकी रंगत कुछ और नहीं
मेरे क़लम की स्याही है ...

सुनो .....
 यूं हुस्न पे अपने
इतना मत इतराओ
ग़ैर की दौलत पर
हक़ मत जताओ

तुम्हें क्या पता नहीं .....

जुल्फों के पीछे
छिपा माहताब (चाँद) किसका है?
इक जगता  हुआ सा
ये ख्वाब किसका है?

किन धडकनों की आरज़ू हो तुम
किसकी इबादत-मज़हब-वज़ू हो तुम
हरपल किसकी जुस्तजू हो तुम
फिरभी, हरदम किसके रू -ब- रू हो तुम

किसके लिए हर शय में हो, हर जगह हो
किसकी शाम हो, शब हो, सुबह हो
खुद से जो पूछो कि तुम क्या हो
किसी के लिए जीने की वजह हो .......

कि अब इतना इतराओ नहीं
राज़ -ए - दिल बता भी दो - 2
किसी की अमानत है ये
अपना दिल लौटा भी दो .........

Comments

Popular posts from this blog

हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा