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मेरा दिल तुम्हें कुछ इस तरह ढूंढता है.
जैसे कोई फ़क़ीर अपना ख़ुदा ढूंढता है.

टटोलता है हाथों की लक़ीर अक्सर 
अक्सर इक लापता का पता ढूंढता है.

कभी ख़्वाब, कभी ख़्याल, कभी यादों में
गुंजाइश  की  हर  जगह  ढूंढता  है.

इसके दर्द की वजह तुम हो लेकिन
पूछिए तो कहता है कि दवा ढूंढता है.

तुम्हारी जुल्फों - सी शाम चाहता है ये,
तुम्हारे  चेहरे - सी  सुबह  ढूंढता  है.

तुम  हो  एहसास  की  ठंडी  पुरवायी,
मगर ये पागल सूरत-ए- सबा ढूंढता है.

काश कि झाँक पाता ये खुद में फ़क़ीर
समझ जाता कि बे - वजह ढूंढता है.

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