Skip to main content

जाल


बंसी (FISHING ROD) डाल के बैठेगे
फुर्सत के सरवर (सरोवर) में.
यादें पकड़ना
अब अपना शगल बनाएं.

या माज़ी में
स्याही बिछाएं
लम्हें फसाएं
ग़ज़ल बनाएं.

या फिर नंगे हाथ ही
वक़्त की दरिया में
उतर जाएँ

खूब खंगाले लहरों को
अश्क से तर सरवर से
यादें तुम्हारी
पकड़ लायें.

इससे पहले कि
वक़्त का ठहरा पानी
मेरे धड़कन की हलचल से
मटमैला हो जाए....

इससे पहले कि
चंचल यादें
इसमें छिपकर
खो जाएँ....

स्याही के
लफ्ज़नुमा जाल में
फंसा लूं तुमको....

मन के AQUARIUM में
ऐ जलपरी
बसा लूं तुमको.....

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा