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लताजी के लिए

तुम गुमशुदा नहीं हो पाओगी
कहीं लापता नहीं हो पाओगी...

मेरे सरीखे कितने दिल ओ- ज़ेहन पर
दस्तक है तुम्हारी
तुम कोई आदत हो, लत हो
लता हो लाईलाज बीमारी

तुम्हारे हर लफ्ज़ मारतें हैं
हमें किस्तों में
तुम्हारी गुनगुनाहट से है नाता
और क्या रखा है रिश्तों में


जाने कैसे मेरी हर ख़ुशी
हर ग़म का तुम्हें पता है
ज़िन्दगी में इतनी दखलंदाजी
किसको खटकती है, कब खता है

तुमने अपनी आवाज़ को
दी है सूरत कोई
सुनता हूँ तो लगता है
वीणा लिए गा रही है मूरत कोई

तुम तन्हा होकर भी
तन्हा नहीं हो
सब हैं तुम्हारे
तुम भी हर कहीं हो

ऐ आवाज़ को पहचान बनाने वाली
ऐ बुलंदियों को पायदान बनाने वाली
ख़ुदा हैरत में है ख़ुद के करिश्में पर
ऐ बूत! बूतकार को हैरान बनाने वाली.....

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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा