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दहशतगर्द....

हर तरफ बारूद की ये बू क्यूँ है....
चिथड़ी उम्मीदें हैं ख़ाबों का लहू है...

जिनके रंगे हैं हाथ लहू से
क्या वो इंसान की औलाद नहीं हैं...
हैं अगर इन्सान तो क्यूँ
इंसान से जज़्बात नहीं है.

जिनके आस्तीन भीगी हैं लहू में
घर वो भी लौट कर जायेंगे...
देखकर अपने बच्चों की ही लाशें
कैसे उनसे नज़र मिलायेंगे...

ये कैसी इबादत, किस खुदा को खुश कर रहे हैं....
फ़िक्र है न उसकी न उससे डर रहे हैं...
लाशों में शामिल है लाश ख़ुदा की...
अल्लाह! गुमराह हैं, मार रहे हैं मर रहे हैं....

रामू को है अभी भी
अपने लख्त-ए- जिगर का इंतज़ार
ताक रही हैं बूढी आँखें
ख़बरों पर नहीं उनको ऐतबार

तबस्सुम की अभी अभी तो
हुई थी हाथ पीली
मेहँदी के रंग उतर आये आँखों में
लहू से है आँख गीली

नन्हे अली की टिकी हैं दरवाज़े पर आँखें
आज उसकी साल गिरह है
अब्बा आयेंगे, लायेंगे जीप
अब उसका इंतज़ार लम्बा है, बेवजह है

श्वेता टूट गयी, रेजा रेजा हो गयी
उसकी आँखें भर आई
हाँ यही है भईया मेरा
देखकर बोली राखी बंधी कलाई

बेवा हुई हैं तेरी अपनी ही बहनें
उठा है तेरे ही सर से बाप का साया
पीकर इस वतन का दूध
वाह तूने क्या है फ़र्ज़ निभाया

अभी गफलत की धूल में जो तू अँधा है
रूह कांपेगी तेरी नज़रें न सोयेंगी
छटेगी जल्द ही गर्द ये
तू भी रोयेगा तेरी खुदायी भी रोएगी...

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मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
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