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ज़माने के साथ नहीं अकेले आने का
बस यही एक तरीक़ा है मुझे हराने का
लहरें मुख़ालिफ़ हों, मुक़ाबिल बन बेशक़
पर आँख में आंसू हो तो डूब जाने का
ज़िंदगी उसकी अपनी, इम्तिहां बन गयी
बहुत शौक़ था उसको मुझे आज़माने का
ज़हीन करे तर्क तो, तर्क कर उनसे
पर ज़ाहिल से शुरू में ही, हार जाने का
सीने पे जो रखा खंज़र, तो डर गया मैं
सीना उसका, दिल मेरा, ख़ौफ़ दीवाने का
ताउम्र सड़क पे सोया, मरने पे मिली चारपाई
क्या ही सबब पूछूं, सुब्ह चराग़ जलाने का
जो वो देखे दर्पण, दर्पण तस्वीर समझे ख़ुदको
आईने को भी कभी, आईना दिखाने का
कभी सुनी नहीं उसकी, मगर जो कहा उसने
चले जाओ, मन बना लिया चले जाने का
बस कि अब फ़क़ीर, ओढ़ लो क़ब्र अपनी
ख़ाब ही रहा, ख़ाब के ख़ाब में आने का

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