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आंसू पे गुस्से की परत चढ़ाता हूँ
मैं अक्सर आग से पानी बुझाता हूँ
जिक्र तेरा भी है मेंरी कहानी में, सो
कहानी को बस कहानी बताता हूँ
क़दमों के आगे सर न झुका पाऊंगा
ले तेग़ के आगे गर्दन झुकाता हूँ
तेरी जीत में जीत है मेरी इसलिये
जीतते जीतते मैं हार जाता हूँ
गोली चलाता हूँ मैं सय्याद से पहले
बेख़बर सभी परिंदों को जगाता हूँ
ख़ाली कश्ती भी लग गयी किनारे
मुझे गुरूर था कश्ती मैं चलाता हूँ
दोस्ती तोड़ ली है उसने जबसे फ़क़ीर
उसको बस एक अच्छा दोस्त बताता हूँ

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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
मिरा होगा फ़क़त तू सुन, हमारा तो नहीं होगा तुझे गर तू भी चाहे तो गंवारा तो नहीं होगा जिसे तुम दोस्त कहते हो, उसे तुम आज़माओ तो जहाँ डूबे वहाँ होगा, पुकारा तो नहीं होगा मुहब्बत का दुबारा, तजरबा, कुछ यूं हुआ यारों ग़लत थे हम हमें धोखा दुबारा तो नहीं होगा मिटाया है अभी उसने फ़क़त सिन्दूर माथे का अभी कंगन वो सोने का उतारा तो नहीं होगा अजी उसको तो मेरी बंद आँखें देख लेती हैं नज़र वालों, नज़र होगी, नज़ारा तो नहीं होगा