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बच्चा


मेरे ख़्वाब के क़द का
एक छोटा सा बच्चा था
सोता-जगता था मेरे संग
मेरी आँखों में ही बसता था
ग़ुमी राहों का मुसाफ़िर था
रस्तों को राह दिखाता था
अक्सर नक़्शे पे क़लम से
अपनी दुनिया बनाता था
क़लम को बनाके तलवार
हर सरहद मिटाता था
सोशल इंजीनियर था वो
हदें मिटाना उसे आता था
कभी नक़्शे फाड़ पहाड़ी से
पुर्ज़ा - पुर्ज़ा उड़ाता था
गरीबों में वो रोबिन हुड
दुनिया बाँट के आता था
ग्लोब गोल नहीं, बस बॉल था
पैरों में दुनिया रखता था
एटलस के पन्ने फाड़कर
नाव बनाया करता था
पर नाव, छीन न ले कोई
खौफ में भी रहता था
सबसे बचाके, सबसे छुपाके
दिलवाली जेब में रखता था
बेख़ौफ़ भले न हो, बेफ़िक़्र था वो
कब किसकी परवाह करता था
जिस दुनिया में रहता था वो
उस दुनिया को जेब में रखता था
मेरे ख़्वाब के क़द का
एक छोटा सा बच्चा था


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मुझसे तेरी खुशबू आती है......

तुम्हारा ज़िक्र लबों पर दबा लेता हूँ तुम्हारा रुख पलकों में छुपा लेता हूँ साँसों में सरगोशी भी है चुप चुप सी, धीमी धीमी धड़कने भी चलती हैं अब दबे क़दमों से, थमी थमी बचा रहा हूँ तुम्हें छिपा रहा हूँ तुम्हें दुनिया से, रुसवाई से कभी कभी अपनी ही परछाई से लेकिन ख़्वाब में तुझसे बातें करने की आदत अक्सर मुझे डराती है अब दिल में छुपाना मुमकिन नहीं मुझसे तेरी खुशबू आती है. मुझसे तेरी खुशबू आती है.

सूत पुत्र कर्ण

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दो लबों पर वो एहसास बाकी है कैसे चूमा था मुझे पहली बार.. गहरी आँखों में दर्ज है वो मंज़र कैसे देखा था मुझे पहली बार.. ... मेरी जिस्म की तपिश अब भी आगोश में है कैसे लगाया था गले मुझे पहली बार उँगलियों का दबाव अब भी महसूस करती है कैसे थमा था मैंने उसका हाथ पहली बार अब भी शहद घुल जाते हैं उसके कानों में कैसे पुकारा था मैंने उसे पहली बार अब भी रुलाती है उसको ये याद कैसे हंसाया था मैंने उसे पहली बार आईना हूँ मैं उसके जिस्म ओ रूह का ख़ुद को देखा... देख के मुझे पहली बार कोई जो मुझसे पूछे, वो मेरी क्या है बस एक मुखत्सर सा जवाब 'मेरी दुनिया है' या कहूँगा मेरा वजूद, मेरी जन्नत, मेरी जाँ है नहीं सनम नहीं, वो मेरी माँ है.