Skip to main content

बयां -ए- जानां

वो जब बोलता है
तो बोलता है
कुछ ऐसे अंदाज़ में…

जैसे शबनम के
ढलकने का हो सलीका

हर लफ्ज़ लम्स हो
पहली कली का

जैसे कपास की
रूई उड़ी हो

लफ्ज़-लफ्ज़
बुलबुले की लड़ी हो ------ 1

वो जब बोलता है
तो बोलता है
कुछ ऐसे अंदाज़ में…

जैसे अगर
अल्फ़ाज़ टपक जाएं

तो उन पर
मक्खियां भिनभिनाएं

चाय में अगर
शक्कर कम हो

तो उसमें बस उसके
लफ्ज़ ही मिलाएं

डायबिटीज के मरीज़
ज़रा फासला से ही
उससे राब्ता बढ़ाएं ------- 2

वो जब बोलता है
तो बोलता है
कुछ ऐसे अंदाज़ में…

हर बार हौले से मानो
कुछ यूं कहता है

बात- बात पे
जैसे I LOVE YOU कहता है

ज़ख्मों की मरहम से
रफू करता है

चला भी जाए तो देर तक
मुझसे गुफ्तगू करता है

वो जब बोलता है
तो बोलता है
कुछ ऐसे अंदाज़ में… 3

Meaning:

शबनम – Dew  ढलकने – Drip  सलीका – Style  लम्स – Touch अल्फ़ाज़ – Words राब्ता – contact रफू – Patch 

Comments

Popular posts from this blog

मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.

मदारी

अरे! हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरा पिटारा, है जग सारा, दुनियादारी हो तेरे इशारे का सम्मान करें ख़ुद हनुमान तुम मांगो भीख तेरे कब्ज़े में भगवान ईश का करतब इंसान और ईश इंसानी कलाकारी हो   हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! आस्तीन सा एक पिटारा सांप हम जै सा तुम्हारा सर पटके बार बार विष उगलने को तैयार न ज़हर उगल आज मत बन रे समाज काटने- कटने की ये बीमारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरे जमूरे- आधे अधूरे भूखे - नंगे , हर हर गंगे हाथसफाई के उस्ताद पर लगे कुछ न हाथ जीने के लिए जान लगाएं ज़ख्म से ज़्यादा कुछ न पाएं हवा खाएं साएं – साएं बचपन के सर चढ़ गयी ज़िम्मेदारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो!
हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी