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बड़ा जादू है तेरे इस शहर में
चाँद दिखा मुझे भरी दोपहर में

आ दिखा दूं कैसा होता है ख़ुदा
झाँक तो मेरी आईने सी नज़र में

तुम्हें याद करेंगे तुमसे फ़ुरसत पाकर
ख्वाब रात में तेरा ख्य़ाल सहर में

रात भर तड़पा, करवटें बदली
तेरी याद का कंकड़ मेरे बिस्तर में

धूप भी जिसके सामने लगे हैं सांवली
हुनर का हुस्न है, हुस्न के हुनर में

एक दूसरे के लिए बन गए हैं दीवार
कई घर मिले मुझे एक ही घर में

साथ चलने से ही कोई साथ नहीं होता
हमसफ़र नहीं है, साथ हैं हम सफ़र में

*सहर – Morning



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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
मिरा होगा फ़क़त तू सुन, हमारा तो नहीं होगा तुझे गर तू भी चाहे तो गंवारा तो नहीं होगा जिसे तुम दोस्त कहते हो, उसे तुम आज़माओ तो जहाँ डूबे वहाँ होगा, पुकारा तो नहीं होगा मुहब्बत का दुबारा, तजरबा, कुछ यूं हुआ यारों ग़लत थे हम हमें धोखा दुबारा तो नहीं होगा मिटाया है अभी उसने फ़क़त सिन्दूर माथे का अभी कंगन वो सोने का उतारा तो नहीं होगा अजी उसको तो मेरी बंद आँखें देख लेती हैं नज़र वालों, नज़र होगी, नज़ारा तो नहीं होगा