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किसी बिके हुए अखबार सी लगती है
ये दुनिया मुझे इश्तिहार सी लगती है

कर रहा हूँ मैं उसी से दवा की उम्मीद
जो ख़ुद ही कुछ बीमार सी लगती है

मसरूफियत में भूल जाता हूँ तुझे
बस तन्हाई में इक दरकार सी लगती है

वो तेरी वादाफ़रामोशी, वो तेरा हूनर
सर सी कभी तू सरकार सी लगती है

अपनी हथेली से ढंक लेना तेरा रूख़
तेरी ज़ुल्फ़ें तेरी पहरेदार सी लगती है

मौसम ने बदलने का हूनर तुझसे है सीखा
एक कभी तो कभी हज़ार सी लगती है

तुझे याद करेगी तेरे लफ़्ज़ों से ये दुनिया
'फ़क़ीर' तेरी ग़ज़लें तेरी मज़ार सी लगती 

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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा