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तेरी बातें.......

मसरूफियत भी क्या खूब दवा है यारों,
उसे भी भूल जाता हूँ लम्हे दो लम्हें के लिए.

'ज़िन्दगी' है मेरी इस क़दर ख़ूबसूरत,
कमउम्र भी परीशां हैं उसपे मरने के लिए.

वो सर -ता- पाँ है अलग अलग तजर्बा,
इक उम्र कम पड़ेगी उसे समझने के लिए.

डूबने दे मुझे झील सी आँखों में साक़ी,
बड़ी महफूज़ जगह है ख़ुदकुशी करने के लिए.

एक पंखुड़ी से खाया है ख़ार ने वो ज़ख्म,
पूरी उम्र भी कम पड़ेगी जिसे भरने के लिए.

खैरख्वाहों ने समझाया 'ये लत है जानलेवा',
अमां कौन जीता है यहाँ मगर संभलने के लिए.

तमन्ना क्या है, कोई परवाना है 'फ़कीर',
बेताब रहता है जलों से जलने के लिए.



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मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.

मदारी

अरे! हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरा पिटारा, है जग सारा, दुनियादारी हो तेरे इशारे का सम्मान करें ख़ुद हनुमान तुम मांगो भीख तेरे कब्ज़े में भगवान ईश का करतब इंसान और ईश इंसानी कलाकारी हो   हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! आस्तीन सा एक पिटारा सांप हम जै सा तुम्हारा सर पटके बार बार विष उगलने को तैयार न ज़हर उगल आज मत बन रे समाज काटने- कटने की ये बीमारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो! तेरे जमूरे- आधे अधूरे भूखे - नंगे , हर हर गंगे हाथसफाई के उस्ताद पर लगे कुछ न हाथ जीने के लिए जान लगाएं ज़ख्म से ज़्यादा कुछ न पाएं हवा खाएं साएं – साएं बचपन के सर चढ़ गयी ज़िम्मेदारी हो हे मदारी! रे मदारी! रे मदारी! हो!
हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी