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तेरी बातें.......

मसरूफियत भी क्या खूब दवा है यारों,
उसे भी भूल जाता हूँ लम्हे दो लम्हें के लिए.

'ज़िन्दगी' है मेरी इस क़दर ख़ूबसूरत,
कमउम्र भी परीशां हैं उसपे मरने के लिए.

वो सर -ता- पाँ है अलग अलग तजर्बा,
इक उम्र कम पड़ेगी उसे समझने के लिए.

डूबने दे मुझे झील सी आँखों में साक़ी,
बड़ी महफूज़ जगह है ख़ुदकुशी करने के लिए.

एक पंखुड़ी से खाया है ख़ार ने वो ज़ख्म,
पूरी उम्र भी कम पड़ेगी जिसे भरने के लिए.

खैरख्वाहों ने समझाया 'ये लत है जानलेवा',
अमां कौन जीता है यहाँ मगर संभलने के लिए.

तमन्ना क्या है, कोई परवाना है 'फ़कीर',
बेताब रहता है जलों से जलने के लिए.



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हैं ग़लत भी और जाना रूठ भी सच तभी तो लग रहा है झूठ भी बोझ कब माँ –बाप हैं औलाद पर घोंसला थामे खड़ा है ठूंठ भी खींचना ही टूटने की थी वजह इश्क़ चाहे है ज़रा सी छूट भी दे ज़हर उसने मुझे कुछ यूं कहा प्यास पर भारी है बस इक घूँट भी
मेरी सूरत से वो इस क़दर डरता है. कि न आइना देखता है, न संवरता है. गवाह हैं उसके पलकों पे मेरे आंसू, वो अब भी याद मुझे करता है. दूर जाकर भी भाग नहीं सकता मुझसे, अक्सर अपने दिल में मुझे ढूँढा करता है. ख़ामोश कब रहा है वो मुझसे, तन्हाई में मुझसे ही बातें करता है. मेरी मौजूदगी का एहसास उसे पल पल है, बाहों में ख़ुद को यूँही नहीं भरता है. मेरे लम्स में लिपटे अपने हाथों में, चाँद सी सूरत को थामा करता है. जी लेगा वो मेरे बिन फ़कीर, सोचकर, कितनी बार वो मरता है.
सुनो! मैं बादलों के बादलों से लब लड़ाऊंगा यही ज़िद है कि अब आब से मैं आग पाऊंगा मुझे तुम छोड़ के जो जा रहे हो तो चलो जाओ करूंगा याद ना तुमको, मगर मैं याद आऊंगा थमाया हाथ उसके एकदिन शफ्फाक आईना मिरा वादा था उससे चांद हाथों पर-सजाऊंगा ज़रा देखूं कि अब भी याद आता हूं उसे मैं क्या कि अपनी मौत की अफवाह यारों मैं उड़ाऊंगा लड़ाऊं आंख से मैं आंख, वादा था मिरा उसको अजी पानी नहीं जानां, मैं मय में मय मिलाऊंगा बदन शीशे का तेरा और संगदिल भी तुही जानां तुझे तुझसे बचाऊं तो भला कैसे बचाऊंगा