तब न काफिया रदीफ़ का चक्कर था... न ही बहर की जुगाड़बाज़ी... HAPPY FATHER's DAY! हाथ पकड़ कर चलना सीखा फिसले तो तुमसे संभालना सीखा ऊंगली-ऊंगली गिनाने वाले तहज़ीब की घूँट पिलाने वाले कभी चपत लगायी भी तो अगले पल ही सहलाने वाले मेरे संग-संग मुस्काने वाले कौर - कौर खिलाने वाले कभी सर्दीमें बनकर कम्बल जाड़े से बचाने वाले गर्मी में तर –ब- तर साड़ी रात पंखा हिलाने वाले याद आता है इतिवार का दिन साइकिल की घंटी टिन – टिन साइकिल नहीं वो उड़न खटोला हाय आइसक्रीम, बरफ का गोला पहले स्कूल का पहला दिन स्लेट, पेंसिल, फेंका थैला रोकर तुमसे चिपटे ऐसे बदन प्राण से लिपटे जैसे रूमाल से पोंछकर बहता काजल बोले ‘यही हूँ मैं, छुपकर पागल’ गोद में लेकर घर तक आये टॉफ़ी केक क्या न खिलाये बहनी और मैं जब बीमार पड़े थे हमसे ज़्यादा आप तडपे थे कितनी बार हमें ढोये होंगे बाहों में भर के रोये होंगे आसूं हमेशा छिपाया हमसे आँख में धूल बताया हमसे कई बार तो कर्जा लेकर खुश होते थे तोहफा देकर क्रिकेट का नया-नया वो चस्का मम्मी को लगाना जमके मस्का हारकर, फिर तुम्हें लगे मनाने तोतली बातों से तुम्हें समझाने किये कभी जो आना-कानी...